जब आये लब पे तो दुआ कीजिए । हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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8 comments
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Replyबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।
Replyसच्ची बात!
Replyवाह
Replyबहुत खूब
शुक्रिया, श्री प्रतिभा जी।
Replyधन्यवाद ज्योति जी।
Replyबहुत ख़ूब लिखा है ... पिता सम्बल है ... पिता वो द्वार है जिससे दुःख पार नहीं हो पाते ...
Replyशुक्रिया श्री दिगम्बर जी |
Replyजब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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शुक्रिया,,,,,
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