जब-जब ये सावन आता है।
काली-काली इन घटाओं में,
मौसम की दीवानी इन आदाओं में,
खुशबू सी उड़ती इन हवाओं में,
मिट्टी की महक जब फैले फ़िज़ाओं में,
कोई छूटा दामन याद आता है।
जब-जब ये सावन आता है।
महके-महके फूलों में,
हिलोरे लेते झूलों में,
शबनम सी बिछी फूलों पे,
इक तस्वीर नज़र आती है पानी के बबुलों में।
कोई भूला साथी याद आता है।
जब-जब ये सावन आता है।
होंठो पे सजते गीतों में,
कानों में घुलते संगीतों में,
कसमों में वादों में प्रीतों में,
प्यारा है मीत सबसे मीतों में,
इक रूठा जानम याद आता है।
जब-जब ये सावन आता है।
6 comments
Click here for commentsबहुत खूबसूरत रचना
Replyआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-07-2017) को "जब-जब ये सावन आता है" चर्चा - 2673 पर भी होगी।
Reply--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। सावन से जुड़ी यादों को ताज़ा करती आपकी प्रस्तुति लाखों दिलों की धड़कन है। लिखते रहिये देव कुमार जी। बधाई।
Replyबहुत बहुत शुक्रिया लोकेश जी
Replyआदरणीय शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए. धन्यवाद
Replyबहुत-बहुत धन्यवाद श्री रविन्द्र जी . आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे उर्जा से भर दिया है .
Replyजब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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शुक्रिया,,,,,
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