यूँ तो प्यार-मौहब्बत और आपस में मिलजुल कर रहना मेरे शहर की गलियों में अक्सर देखा जाता है ।
पर रमजान के महीने में भाईचारे का माहौल देखते ही बनता है ।
रमजान के पूरे महीने लोग खुदा से खुशहाली, बरकत, और अमन चैन की दुआएं करते हैं ।
रोजा-दर-रोजा तनमन में पाकशाफी लिए लोग खुदा की इबादत में लीन रहते हैं ।
शाम ढलते ही जब रोजा इफ्तार का वक्त होता है, तो मानो ऐसा लगता है कि
रोजेदारों की भाईचारे की दुआएं कबूल हो गईं और सारे आलम में भाईचारा फैल
गया हो ।
रोजेदार अपने घर वालों के साथ-साथ अपने दोस्तों और अपने पडोसियों के साथ मिलकर अपना रोजा खोलता है।
जाति-धर्म से परे लोग ऐसे मिलते हैं,
जैसे राम और रहीम।
जैसे राम और रहीम।
दिल को खुश कर जाने वाले इस नजारे को देखकर, दिल से एक ही दुआ निकलती है ।
निगाहें-ए-कर्म (ऐ खुदा) इस जहां पे यूँही बनाए रखना !
इंसान के दिल में इंसान के लिए प्यार जगाए रखना !
जब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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शुक्रिया,,,,,
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