बचपन के कड़वे घूँट || Poor Children in India

न चहरे पर कोई शिकन थी, न आँखों में मायूसी और नाही होंठो पर कोई सवाल। बस वो तो अपनी दुनिया में मगन थे । तन ढकने के लिए शरीर पर कपड़ों के कुछ चिथड़े भर थे , पाँव नंगे थे और राह मुश्किल थी जी हाँ, बहुत मुश्किल, आखिर लड़ाई अपने पेट से जो थी वो दिन भर अपने पापी पेट को पालने के लिए सडकों की ख़ाक छानते रहे सड़को पर पड़े कचरे को उठाते रहे । अपने मासूम से बचपन जो यूँही लुटाते रहे ।
शायद मैंने गलत सुना था कि 'बचपन बहुत अच्छा होता है' , सभी कहते थे कि बचपन में किसी की कोई चिंता, कोई फ़िक्र नहीं होती। 
 
आज इन बच्चों को सड़क पर इस तरह देखा तो मन में एक साथ हज़ारों सवाल फूट पड़े । इतनी छोटी सी उम्र में ये बच्चें ये सब क्या कर रहे हैं ? ये सब काम अपनी मर्ज़ी से कर रहे हैं या फिर इनके घर वाले करवा रहें हैं ? क्यूँ इन मासूमों से इनका बचपन छीना जा रहा है ?  
मैं बच्चों को एक टक देखता रहा पर उनसे बातें करनी की हिम्मत नहीं हुयी, मैं उन्हें तब-तक देखता रहा जब-तक वो मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गए । 
बचपन-के-कड़वे-घूँट-Poor-Children-in-India

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10 comments

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22/2/20 6:23 pm ×

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 23 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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23/2/20 10:30 pm ×

वाह!बहुत खूब!कहाँ मिलता है सभी को एक-सा बचपन ...खेलने -कूदने की उम्र में पेट की खातिर जुटे हैं काम में ये बच्चे ।

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24/2/20 4:36 pm ×

हृदय स्पर्शी रचना।

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26/2/20 2:36 pm ×

एकदम सटीक भावपूर्ण सृजन

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5/3/20 6:05 pm ×


बहुत ही सुन्दर सृजन...।

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Dev Kumar
admin
17/3/20 8:27 pm ×

बहुत-बहुत आभार रविन्द्र जी

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Dev Kumar
admin
17/3/20 8:29 pm ×

आपको रचना पसंद आयी शुभा जी मेरा लिखना सार्थक हुआ

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Dev Kumar
admin
17/3/20 8:30 pm ×

आपका धन्यवाद मन की वीणा

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Dev Kumar
admin
17/3/20 8:31 pm ×

धन्यवाद सुधा जी

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Dev Kumar
admin
17/3/20 8:32 pm ×

आपका भी धन्यवाद संजय भास्कर जी

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जब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।

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