24/01/2018 मेरे ख्वाबों को पंख देने वाली तारीख रही जी हाँ दोस्तों Prachi Digital Publication द्वारा प्रकाशित पंखुड़ियाँ ईबुक सच में मेरे सपनों को पंख लगा गयी है। सोचकर बड़ा अच्छा लगता है कि हमारे द्वारा लिखी गयी किताब को लोग अपने मोबाइल, अपने लेपटोप पर पढेंगे और समाज में हमारे नाम के साथ लेखक लगना शुरू हो जायेगा।
सबसे पहले तो मैं Prachi Digital Publication का शुक्रियादा करता हूँ कि उन्होंने गुमनाम लेखकों के लिए इतना अच्छा मंच तैयार किया क्योंकि लेखक लोकप्रिय हो या गुमनाम। 'लेखक' लेखक होता है। माना कि एक बड़ा और लोकप्रिय लेखक सोचके समंदर में डूबकर शब्दों के मोती चुनता है तो वही छोटा और गुमनाम लेखक सोच की लहरों में गोता खाता हुआ आख़िरकार उस मोती को चुन ही लेता है।
उस गुमनाम लेखक की लेखनी उस वक़्त और निखर जाती जब उसे कोई समझने वाला या कोई बढ़ावा देने वाला मिल जाता है और धीरे-धीरे वो एक लोकप्रिय लेखक बन जाता है। वर्ना इस दुनिया में न जाने कितने ऐसे लेखक होंगे जो दुनिया के सामने ही नहीं आ पाते है और गुमनामी की चादर ओढ़े वो इस दुनिया से चले जाते हैं।
उसकी लिखी हुयी रचना सोशल साईट के जरिये समाज में घूमती रहती है पर कोई जानता ही नहीं ये रचना किसके द्वारा रची गयी है क्योंकि वो रचना किसी गुमनाम द्वारा लिखी थी। लोग उसे लेखक के रूप में जानते ही नहीं क्योंकि द्वारा उसके द्वारा लिखी किताब लोगों ने पढ़ी ही नहीं, उसकी किताब किसी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुयी ही नहीं, तो लोग कैसे जानेंगे उसे....?
8 comments
Click here for commentsआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-01-2018) को "शुभकामनाएँ आज के लिये" (चर्चा अंक-2861) पर भी होगी।
Reply--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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गणतन्त्र दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी
Replyपंखुड़ियाँ के लिए बहुत बहुत बधाई देव जी
Replyबधाई और शुभकामनाएँ
Replyबहुत-बहुत शुक्रिया सुधा जी
Replyधन्यवाद जी
Replyबहुत ही उम्दा
Replyबहुत-बहुत धन्यवाद शकुन्तला जी
Replyजब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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शुक्रिया,,,,,
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