आज सुबह से ही लोग-बाग़ कन्या पूजन के लिए गली,मौहल्ले और कस्बों में छोटी-छोटी कन्याओं को ढ़ूढ़ते नज़र आये। कभी इस घर तो कभी उस घर फिरते रहे। दुर्गाष्तमी के दिन ही क्यों समाज में कन्याओं के प्यार उमड़ पड़ता है। समाज का ये प्यार, ये दुलार उस वक़्त कहाँ चला जाता है जब समाज के बीच-ओ-बीच कन्या भ्रूण हत्या होती है।
उस वक़्त समाज के लोग क्यों निराश हो जाते हैं जब उनके घर एक बेटी जन्म देती है। बेटी को जन्म देनी वाली माँ ही केवल उस बेटी को प्यार से अपने सीने लगाती है और परिवार के दूसरे सदस्य बेटी के जन्म के समय मुँह बनाये-बनाये फिरते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है।
उस समय क्या होगा जब समाज में कन्या ही नहीं होंगी। बिना कन्याओं के कैसे पूरी होगी दुर्गाष्तमी की पूजा।
हैं सृष्टि का आधार कन्या, और कोई नहीं है दूजा।
नहीं होंगी कन्याएँ फिर कैसे होगी दुर्गाष्टमी की पूजा।
जब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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शुक्रिया,,,,,
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