दया जी आप, मुझे खुद की आँखों पर विश्वास नहीं होता कि आप मेरे पास इतने आराम से बैठी हैं।
कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा,
क्या आप सच में मेरे पास बैठी हो।
शर्मा जी की आँखों में हैरानी और चेहरे पर अजीब किस्म के भाव थे।
वो मन-ही-मन सोचने लगे कि क्या ये सच में वही दया है जो हमेशा मुझसे दूर-दूर रहती थी और तो और मेरी कोई बात तक सुनने को राजी नहीं होती थी।
शर्मा जी को इस तरह सोच में डूबे हुए देख।
दया जी बोली
क्या शर्मा जी मैं कबसे आपसे कह रही हूँ कि हाँ मैं वही दया हूँ।
जिसके इर्दगिर्द आप घुमते रहते थे पर मैं आपसे हमेशा दूरी बनाए रखती थी।
शर्मा जी कहाँ खो गए।
शर्मा जी की आँखों के सामने अपना हाथ हवा में घुमाते हुए दया जी ने पूछा।
ओ सॉरी दया जी मैं जरा यूँही सोच में डूब गया था।
हाँ तो आप क्या कह रही थी।
वही जो आपने पूछा दया जी ने बाहर देखते हुए जबाव दिया।
शर्मा जी ने अपनी कही बात याद की और कहने लगे अरे वो तो मैं यूँही बोल गया।
वो क्या है कि आप हमेशा मुझसे दूर-दूर रहती थी न इसलिए और आज इतने सालों बाद अचानक मुझे मिली और मेरे पास बैठकर ऐसे बात कर रही हैं जैसे आपने मुझसे कितनी बातें की हों।
खैर छोड़िए इन सभी बातों को आप अपनी सुनाए।
जैसे शर्मा जी अपने मन में चल रही पुरानी बातों से पीछा छुड़ाना चाह रहे हो।
शर्मा जी इस बात से बिल्कुल भी अन्जान नहीं थे कि पुराने दर्द की तरह पुरानी बातें कब उखड़ आए ये कौन जाने और शायद वो इसी बात को लेकर डर भी रहे थे कि अब कोई पुरानी बात न हो। कहते हैं कि इन्सान जिस बात से जितना ज्यादा डरता है वही बात हकीकत का रूप धारण कर अगले ही क्षण उसके सामने खड़ी हो जाती है,
और हुआ भी वही।
वैसे भी पुरानी बातों के अलावा शर्मा जी और दया जी के पास कुछ था ही नहीं। दया जी की आँखे अपने हाल के बारे में कुछ कहने से पहले ही सब कुछ बता गयी थी। उनकी आँखों को नम होता देख शर्मा जी बोले क्या हुआ दया।
शर्मा जी के मुँह से सिर्फ दया सुनकर जैसे दया जी में अपनी खाना-बर्बादी सुनाने की हिम्मत आ गयी हो।
दया जी ने अपने आँसू पोंछे और कहने लगी।
शादी के कुछ महीने बाद ही अपने पति से तलाक के बाद जीवन के इस भार को अकेले ही ढोती आ रही हूँ।
एक औरत के लिए अकेले जिन्दगी गुजारना कितना मुश्किल होता है ये मुझसे बेहतर और कौन जान सकता है। जमाने की काँटे भरी निगाहें न उम्र देखती हैं न किसी औरत की मजबूरी।
बस मौके की ताक में लगी रहती हैं।
जब मुझे पता चला कि मैं गर्व से हूँ
तो लगा कि मुझे जीने का सहारा मिल गया हो पर मुझे क्या पता था कि जो बच्चा मेरी कोख में पल रहा है वो लडका नहीं लडकी है।
डाँक्टरी चेकअप के बाद जब मुझे पता चला कि मेरी कोख में एक लड़की पल रही है,
तो मैंने उसे दुनिया में आने से पहले ही दुनिया से विदा कर दिया। मैं चाहती तो उस लड़की को जन्म दे सकती थी पर नहीं। मैं उसे पालपनोस बड़ा कर करती और जमाने में घुमाते अनगिनत भेड़िए उसे नोच-नोच कर खा जाते। बड़ी होकर वो इंसानी रूप में छिपे किसी हैवान का शिकार होती और हर रोज हजारों मौत मरती।
तो क्या बुरा किया मैंने जो ये सब सहने से पहले ही उसे चैन की नींद सुला दिया।
इतना कहने के बाद दया जी ने अपना सिर शर्मा जी की गोद में रख दिया, और किसी बच्चे की तरह बिलख पडीं।
शर्मा जी ने हौले से अपना हाथ उनके सिर पर रख दिया
जैसे उन्हें आश्वासन दे रहे हो कि वे अकेली नहीं ?
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जब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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