भरता ही नहीं ये जख्म मिला कैसा है,
मौहब्बत में मिला ये सिला कैसा है,
पल-पल सताती है उस बेवफा की याद,
थमता ही नहीं ये सिलसिला कैसा है,
Bharta hi nahi ye zakham mila kaisa hai.
Mohabbat mai mila ye sila kaisa hai.
Pal-pal satati hai us bewafa ki yaad.
Thamta hi nahi ye silsila kaisa hai.
जब आये लब पे तो दुआ कीजिए । हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।
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