Tanhaai Shayari FIR UNKI RAAHE

झूठ-फरेब बदस्तूर वो करते रहे !
दिल-ओ-जान से जिनपे हम मरते रहे !
नज़रे तकने लगी हैं फिर उनकी राहें ,
जो तन्हाई का ज़हर मेरी ज़िंदगी में भरते रहे !
 
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जब आये लब पे तो दुआ कीजिए ।
हमारे लिए भी चंद अल्फाज अपनी जुबां कीजिए ।

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